समर्थ गुरु रामदास के पास बड़ी आध्यात्मिक शक्ति थी। वे उसे किसी को देना चाहते थे, पर सत्पात्र न मिलने पर दें किसे ? उन्होंने बालक शिवाजी की परीक्षा ली। आँखों में दरद का बहाना किया और उसके उपचार में सिंहनी के दूध की आवश्यकता बताई। यदि शिवाजी स्वार्थी शिष्यों की तरह इस झंझट में पड़ने से कतरा गया होता तो उसे न तो समर्थ गुरु का आग्रह मिला होता और न भवानी की दी हुई अपराजिता तलवार उपलब्ध होती।
Samarth Guru Ramdas had great spiritual power. They wanted to give it to someone, but if they did not get the eligible, whom should they give? He took the examination of boy Shivaji. Excused pain in the eyes and told the need of lioness's milk in its treatment. Had Shivaji shied away from getting into this mess like selfish disciples, he would have neither received the request of a capable guru nor the Aparajita sword given by Bhavani.
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नकारात्मक चिन्तन को छोड़ें महर्षि दयानन्द के उद्गारों को यदि हम रचनात्मक रूप नहीं देते तो हम ऋषि ऋण से उऋण नहीं होंगे। यदि कुरीतियों का समर्थन करते रहे तो ऋषि के ग्रंथों को पढकर भी हम समाज की कायापलट नहीं कर पायेंगे। जिस बस्ती में हम रहते हैं, यदि उसमें हम आँखें बन्द कर लें तो आर्यत्व कितने प्रतिशत रह जायेगा? आर्यजन स्वयं ही इस बात पर...