नकारात्मक चिन्तन को छोड़ें
महर्षि दयानन्द के उद्गारों को यदि हम रचनात्मक रूप नहीं देते तो हम ऋषि ऋण से उऋण नहीं होंगे। यदि कुरीतियों का समर्थन करते रहे तो ऋषि के ग्रंथों को पढकर भी हम समाज की कायापलट नहीं कर पायेंगे। जिस बस्ती में हम रहते हैं, यदि उसमें हम आँखें बन्द कर लें तो आर्यत्व कितने प्रतिशत रह जायेगा? आर्यजन स्वयं ही इस बात पर विचार करें। ऋषि ने निर्देश किया है कि जहाँ भी कूड़ा देखो वहीं झाडू लगाओ। सत्यार्थप्रकाश का पाठक अपने आपको एक कुशल एवं सक्षम उपदेशक समझे तो ऋषि के मन्तव्यों की परम्परा कायम रह सकती है और यदि आर्य बन्धु इस दायित्व को स्वीकार कर लें तो सुधार होकर रहेगा। इस सम्बन्ध में कभी भी नकारात्मक चिन्तन न करें। हम सुधारक हैं। सुधार की व्यवस्था करें।
If we do not give a constructive form to the expressions of Maharishi Dayanand, we will not be able to repay the debt of the Rishi. If we keep supporting the evil practices, then even after reading the scriptures of the Rishi, we will not be able to transform the society. If we close our eyes to the colony in which we live, how much percent of Aryatva will remain? Arya people should think about this themselves. The Rishi has instructed that wherever you see garbage, sweep it there. If the reader of Satyarth Prakash considers himself a skilled and capable preacher, then the tradition of the Rishi's views can be maintained and if the Arya brothers accept this responsibility, then reform will definitely happen. Never think negatively in this regard. We are reformers. Make arrangements for reform.
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नकारात्मक चिन्तन को छोड़ें महर्षि दयानन्द के उद्गारों को यदि हम रचनात्मक रूप नहीं देते तो हम ऋषि ऋण से उऋण नहीं होंगे। यदि कुरीतियों का समर्थन करते रहे तो ऋषि के ग्रंथों को पढकर भी हम समाज की कायापलट नहीं कर पायेंगे। जिस बस्ती में हम रहते हैं, यदि उसमें हम आँखें बन्द कर लें तो आर्यत्व कितने प्रतिशत रह जायेगा? आर्यजन स्वयं ही इस बात पर...